कैनविज टाइम्स,डिजिटल डेस्क। हाल ही में नीतीश कुमार की खामोशी को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा है, और इसे भा.ज.पा. (BJP) के लिए एक खतरे की घंटी के रूप में देखा जा रहा है। नीतीश कुमार, जो बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के नेता हैं और महागठबंधन के प्रमुख सदस्य रहे हैं, ने अक्सर अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर गैर-संप्रदायिक और स्थिर दृष्टिकोण अपनाया है। लेकिन उनके चुप रहने या किसी मुद्दे पर सीधे बयान न देने को लेकर विभिन्न अटकलें लगाई जा रही हैं।
भाजपा को नीतीश की खामोशी से डर क्यों?
नीतीश कुमार की खामोशी बीजेपी को इसलिए चिंतित कर रही है क्योंकि नीतीश कुमार की राजनीति में अचानक दिशा बदलने की क्षमता हमेशा से रही है। बिहार में उनकी राजनीतिक चालें अचानक से बदल जाती हैं, जैसे 2017 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ा और फिर महागठबंधन के साथ आए। इससे बीजेपी को यह डर है कि नीतीश कुमार किसी समय बीजेपी के साथ अपना पाला फिर से बदल सकते हैं।
आंबेडकर का मुद्दा:
कभी-कभी नीतीश कुमार आंबेडकर के नाम पर अपनी राजनीति को मजबूत करते हैं। बिहार में सामाजिक न्याय का मसला हमेशा प्रमुख रहा है, और आंबेडकर की विचारधारा को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी ने दलित समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कई कदम उठाए हैं। भाजपा और नीतीश कुमार के बीच तकरार का एक कारण यह भी हो सकता है कि आंबेडकर की विचारधारा को लेकर दोनों पार्टियों के दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं। बीजेपी में कुछ नेताओं ने आंबेडकर को लेकर बयानबाजी की है, जो नीतीश कुमार को अप्रत्याशित रूप से बीजेपी के खिलाफ और दलितों के अधिकारों की रक्षा के पक्ष में खड़ा कर सकती है।
नीतीश कुमार का पाला बदलने की संभावना:
नीतीश कुमार का इतिहास रहा है कि वे समय-समय पर अपने राजनीतिक गठबंधन बदलते रहते हैं। महागठबंधन में रहते हुए उन्होंने भाजपा के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन अगर उनकी पार्टी को लगता है कि सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें बीजेपी के साथ जाना होगा, तो वे यह कदम उठा सकते हैं। बीजेपी को यही डर है कि कहीं नीतीश कुमार फिर से अपना पाला न बदल लें, जैसा उन्होंने पहले भी किया था। इस तरह, नीतीश कुमार की खामोशी और उनके साथ गठबंधन करने के लिए उठाए गए कदम बीजेपी के लिए चिंताजनक बने हुए हैं।